19 जनवरी1990 की वह काली स्याह रात || by Nirja || LIVE IMAGE |
19 जनवरी1990 की वह काली स्याह रात,
आ गई फिर आज याद।
जब ‘कश्मीर फाइल्स’ की,
चर्चा देखी सुनी हर जगह।
अभी तक हिम्मत नही जुटा पाई हूँ
खुद को खुद मे देखना,
लगेगा ऐसे जैसे,
फिर से ज़ख्मो को कुरेदना।
क्यौ लोग दिख रहे,
हैरान व परेशान।
नही पचा पाते सत्य,
व करतें सत्य का अपमान।
था एक घर ,
हँसता -खेलता जीवन,
और उस मे भरा,
प्यार व सत्कार।
पल मे बदल गया जीवन,
जब जालिमो ने लगाई गुहार,
काफिरो घर छोडो।
वरना हो जाओ मरने को तैयार।
अजीब त्रासदी मै झेल चुकी हूँ
निर अपराध घर से ढकेल दे चुकी हू।
क्यौ बहरी हुई सरकारे
जब जब लगाई गुहारे।
आसान नही होता,
यूँ घर को छोड़ना
मानो यादो को,
छोटे से डब्बे मे संजोना।
हुई चारो ओर चीत्कार,
लिये हजारो पण्डित मार।
टिका लाल टपलू जैसे नेता
सर्वा नंद प्रेमी जैसे कई साहित्यकार
न था राजनीती से जिसका कोई सरोकार।
5000 वर्ष से भी पुरानी परम्परा को,।
पण्डित यूँ खोते जा रहे है,
मानो खुद अपनी अर्थी,
अपने कांधो पर उठा रहे है।
आज भी लौटने को आतुर मै
सोंचती हू
मेरे वतन की बुलबुल
मुझे बुला रही हैं।
चहक -चहक गीत
मेरे लौटने के गा रही है।
मेरे श्रद्दा के स्थान,
जिनसे है मेरी पहचान
आज फिर से याद आ रहे है
मेरे वापस घर लौटने की
आस जगा रहे है।
लेकिन इन सियासत के बीच भटक गयी हू मै,
चाहकर भी राह वतन की नही पकड रही हू मै
सोंच सोंच कर उलझ सी गई हू मै,
न चाहते हुए भी थक सी गई हू मै।
– नीरजा (Journalist)