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दुनिया की सबसे महंगी कॉफी – Kopi luwak – ये कॉफ़ी सिवेट नामक बिल्ली के मल से तेयार की जाती है || By Rama Deepak || LIVE IMAGE |
दुनिया में कॉफ़ी के दीवानो की कमी नही है।
एक कप कॉफ़ी के लिये लोग कई हज़ार रुपये तक खर्च करने के लिये तेयार रहते है और इसके नए-नए स्वाद की तलाश में दुनियाभर छान मारते हैं । लेकिन क्या आपको पता है कि दुनिया की सबसे महंगी कॉफी कौन-सी है और क्या बात उसे सबसे खास बनाती है? इस कॉफी का नाम है कोपी लुवाक (Kopi luwak)| इसका एक औसत कप अमेरिका में लगभग 7 हजार रुपए का मिलता है |
कोपी लुवाक कॉफी की उच्च कीमत काफी हद तक इसके उत्पादन के पारंपरिक तरीकों के कारण है। उत्पादन में बहुत समय और ऊर्जा लगती है, ये कॉफी कई एशियाई देशों समेत दक्षिण भारत में भी बनती है, लेकिन दिलचस्प बात ये है कि ये कॉफ़ी सिवेट नामक बिल्ली के मल से तेयार की जाती है ये एशियाई पाम सिवेट जानवर हैं जो कि एशिया के जंगलों में पाए जाते हैं इन्हें सिवेट कैट भी कहा जाता है |
दुनिया में कॉफी का सबसे बड़ा उत्पादक देश ब्राजील है। यह 150 से भी अधिक वर्षों से कॉफ़ी का वैश्विक उत्पादक रहा है। ब्राजील के बाद वियतनाम, कोलंबिया, इंडोनेशिया, इथियोपिया, होंडुरास, भारत, युगांडा, मेक्सिको और ग्वाटेमाला अन्य शीर्ष कॉफी उत्पादक देश हैं।
19वीं शताब्दी में, इंडोनेशिया में स्थानीय लोगों का कॉफी बेचना गैरकानूनी था क्योंकि इसे यूरोप में निर्यात किया जाता था | लेकिन स्थानीय लोगों ने जब पाम सिवेट के मल से कॉफी जैसे दिखने वाले बीन्स को इकट्ठा करके उन्हें साफ करके, सुखाकर कॉफी बीन्स बनाने शुरू किए और आश्चर्यजनक रूप से इन बीन्स से बनी कॉफी का टेस्ट रेगुलर कॉफी से काफी अच्छा था तो यहां ये सिवेट कॉफी का क्रेज शुरू हुआ जो कॉफी प्रेमियों को आज भी इंडोनेशिया की ओर आकर्षित करता है|
सिवेट बिल्ली के मल से तैयार होने वाली इस कॉफी को बिल्ली के नाम पर सिवेट कॉफी (civet coffee) भी कहते है | ये बिल्ली की प्रजाति है लेकिन इसकी बंदर की तरह लंबी पूंछ होती है | इकोसिस्टम बनाए रखने में इस पशु का काफी महत्वपूर्ण योगदान माना जाता है | लेकिन आखिर बिल्ली की पॉटी से भला कॉफी जैसा पेय कैसे तैयार हो सकता है, ये सवाल सबके मन में आता है ?
कोपी लुवाक कॉफी चेरी से बनी कॉफी है , सिवेट बिल्ली को कॉफी बीन्स खाने का शौक है| वे कॉफी की चेरी को अधकच्चे में ही खा लेती हैं | चेरी का गूदा तो पच जाता है लेकिन बिल्लियां उसे पूरा का पूरा पचा नहीं पातीं क्योंकि इसके लिए उनकी आंतों में उस तरह के पाचक एंजाइम्स नहीं होते | ऐसे में होता ये है कि बिल्ली के मल के साथ कॉफी का वो हिस्सा जो हजम न हो सका वो भी निकल आता है |
इसके बाद उसे शुद्ध किया जाता है सभी तरह के जर्म्स से मुक्त करने के बाद आगे की प्रक्रिया होती है. इस दौरान बीन्स को धोकर भूना जाता है और फिर कॉफी तैयार होती है। पश्चिम में, कोपी लुवाक को “कैट पूप कॉफी” के रूप में जाना जाता है। अब सवाल ये आता है कि बीन्स को बिल्ली के मल से ही लेने की क्या जरूरत! इसे सीधे भी तो तैयार किया जा सकता है |
नेशनल जिओग्रफिक की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि बिल्ली की आंतों से गुजरने के बाद इन बीन्स में पाए जाने वाले प्रोटीन की संरचना में बदलाव होता है | इससे कॉफी की एसिडिटी निकल जाती है और ज्यादा शानदार और स्मूद पेय तैयार होता है | बिल्ली के शरीर में आंतों से गुजरने के बाद कई तरह के पाचक एंजाइम मिलकर इसे बहुत बेहतर बना देते हैं | यहां तक कि इसकी पौष्टिकता भी कई गुना बढ़ जाती है |
सिवेट कॉफी को खाड़ी देशों, अमेरिका और यूरोप में काफी शौक से पिया जाता है और इसे आम लोगों का नहीं, बल्कि रईसों का शौक कहा जाता है | यह माना जाता है कि नियमित कॉफी की तुलना में इसके कुछ फायदे होते हैं | इस कॉफी से एसिडिटी कम बनती है | इसके अलावा, एंटीऑक्सिडेंट से भरपूर कोपी लुवाक आपके चयापचय में भी सुधार करता है, अल्जाइमर के कारण न्यूरोडीजेनेरेटिव रोगों को रोकता है और डायबिटीज को भी नियंत्रित करता है. हालांकि अभी इस पर अधिक शोध होना बाकी है |’
हमारे यहां कर्नाटक के कुर्ग जिले में इस कॉफी को तैयार किया जाता है | एशियाई देशों में इंडोनेशिया में इसे भारी मात्रा में बनाते हैं. टूरिस्ट नेशन के तौर पर उभर रहे इस देश में सैलानियों को इन जगहों पर सैर-सपाटे के लिए भी ले जाया जा रहा है | इंडोनेशिया का मकसद है कि इससे न केवल उनकी कॉफी को बढ़ावा मिले, बल्कि पर्यटन भी फले-फूले |
Civet Cats Driven Mad: PETA Exposes Kopi Luwak Coffee
कई बार एनिमल राइट्स पर काम करने वाली संस्थाएं इसपर आपत्ति भी जता चुकी हैं | जंगली बिल्लियों की सिवेट प्रजाति को इस कॉफी के उत्पादन के लिये कैद किया जा रहा है | कॉफी बीन्स को तैयार करने की ये प्रक्रिया कॉफी के बागानों के आसपास होती है लंदन की संस्था वर्ल्ड एनिमल प्रोटेक्शन्स (World Animal Protection) ने अपनी जांच में पाया था कि बाली में कॉफी के 16 बागानों में कई सिवेट कैद में थे | इस बात को संस्था ने उठाया और ये रिपोर्ट एनिमल वेलफेयर नामक पत्रिका में छपी भी थी कि कैसे अपने स्वाद के लिए हम बेजुबान जानवरों पर हिंसा कर रहे हैं |
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– Rama Deepak M.A. Mass Communication M.A. Hindi |