बिहार का जंगलराज’: बॉबी बलात्कार एवं हत्याकांड – जब एक लड़की की मौत छुपाने में पूरी सरकार लग गई! || By Rama Deepak || LIVE IMAGE

बिहार का जंगलराज’: बॉबी बलात्कार एवं हत्याकांड…

जब एक लड़की की मौत छुपाने में पूरी सरकार लग गई! 

भारत की राजनीति में महिलाओं के शोषण एवं उन्हें इस्तेमाल करके ठिकाने लगा देने की ऐसी कई कांग्रेसी कहानियां रही हैं जिन्होंने एक लंबे समय तक अपनी चर्चाओं से भारत की राजनीति के एक स्याह हिस्से को देश की जनता के सामने उजागर किया है। दुर्भाग्य से इन कहानियों में देश के अन्य हिस्सों की अपेक्षा बिहार का सब से अधिक योगदान है। इसके पीछे की मुख्य वजह, बिहार की सामंतशाही वाली राजनीति में शुरू से ही भ्रष्टाचारियों और अपराधियों का दबदबा होना रहा है।

श्वेतनिशा त्रिवेदी उर्फ बॉबी।

“पूनम की रात्रि में निशा श्वेत होती है और बहुत खूबसूरत होती है। श्वेतनिशा बेहद सुंदर थी, शायद इसलिए उसे यह नाम दिया गया था।“ ये वो लाइनें हैं, जिससे पूर्व IPS अधिकारी किशोर कुणाल ने अपनी किताब “दमन तक्षकों के”, में बॉबी उर्फ श्वेतनिशा की खूबसूरती को बताने की कोशिश की है। बिहार राज्य धार्मिक न्यास बोर्ड के अध्यक्ष रह चुके IPS अधिकारी किशोर कुणाल ने अपनी किताब “दमन तक्षकों के” नाम से प्रकाशित की है।

कौन थी बॉबी उर्फ श्वेतनिशा

बॉबी जिसका असल नाम बेबी उर्फ श्वेतनिशा त्रिवेदी था, बिहार विधान परिषद की सभापति और कांग्रेस नेता राजेश्वरी सरोज दास की गोद ली हुई बेटी थी।

सरोज दास ने बार-बार पूछने पर भी कभी नहीं बताया कि बेबी उर्फ श्वेतनिशा त्रिवेदी की असल मां कौन थी, इसलिए ज्यादातर लोग उन्हें ही उसकी असल मां समझते थे। सभापति की बेटी होने के कारण बॉबी को विधानसभा सचिवालय में टेलीफोन ऑपरेटर की नौकरी मिल गई थी। उसकी खूबसूरती को देखकर उसके प्रशंसकों ने उसे राजकपूर की फिल्म बॉबी की नायिका का नाम दे दिया था। माननीय उस पर इस कदर लट्टू थे कि अपने भत्ते का पूरा बिल बना उसे सौंप दिया करते थे। उसकी खूबसूरती की वजह से कई राजनेताओं के साथ उसकी घनिष्ठ मित्रता हो गई थी। बॉबी विवाहित थी| उसकी पहली शादी ज्यादा दिनों तक नहीं चली और दूसरी शादी से उसके दो बच्चे थे|

बिहार की राजधानी पटना में 11 मई 1983 को देश के दो बड़े अखबारों ‘आज’ और ‘प्रदीप’ के फ्रंट पेज पर एक खबर छपती है| एक ऐसी खबर जिसके बाद चारों ओर कोहराम मच गया. खबर में बस इतना लिखा था कि ‘बॉबी की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई है और उसकी लाश को कहीं छुपा दिया गया है |’ हालांकि, इस खबर की कहीं और कोई जानकारी नहीं थी, ना ही इसे लेकर कहीं कोई एफआईआर दर्ज की गई थी| लेकिन इसके बाद भी इस खबर से पूरे बिहार में सनसनी फैल गई|

उस वक्त बिहार में कांग्रेस की सरकार थी और मुख्यमंत्री डॉ जगन्नाथ मिश्रा हुआ करते थे| वहीं, बिहार के एस एस पी किशोर कुणाल हुआ करते थे| किशोर कुणाल के बारे में कहा जाता है की वह बेहद तेजतर्रार, अपने काम के प्रति ईमानदार और किसी के दबाव में ना आने वाले व्यक्ति थे| उस वक्त उन्हें बिहार का एस एस पी बने हुए मात्र एक महीना ही हुआ था| अब इसे इत्तेफाक कहिए या नेताओं की बदकिस्मती की बॉबी की मौत की खबर पर एस एस पी किशोर कुणाल की नजर पड़ जाती है|

कुणाल ने कब्रिस्तान से शव निकलवाकर कराया था पोस्टमॉर्टम

शुरुआती पूछताछ में बॉबी की मां, राजेश्वरी सरोज दास से पता चला कि बॉबी की मौत 8 मई 1983 की सुबह हुई। इसके बाद उसके शव को एक कब्रिस्तान में दफना दिया गया था। इसकी वजह उसका क्रिश्चियन धर्म से होना बताया गया। जब मौत की वजह के बारे में पूछा गया तब केस और उलझ गया। किशोर कुणाल के सामने बॉबी के पोस्टमॉर्टम की दो रिपोर्ट्स थीं। रिपोर्ट्स में मौत के दो अलग-अलग कारणों का जिक्र किया गया था।

पहली रिपोर्ट में मौत की वजह ज्यादा खून बहना बताया गया था, तो दूसरी रिपोर्ट में बॉबी की मौत हार्ट अटैक के कारण बताई गई थी। रिपोर्ट पाने के बाद उन्होंने बिना देरी किए कब्रिस्तान से बॉबी के शव को निकालने का फैसला लिया। शव को कब्रिस्तान से वापस निकाला गया और उसके बाद एक बार फिर पोस्टमॉर्टम के लिए भेजा गया। इस बार मौत का कारण सुनकर सबके होश उड़ गए थे। डॉक्टरों की रिपोर्ट यह खुलासा कर रही थी बॉबी की मौत जहर खाने से हुई है।

अब बारी थी पता लगाने की कि बॉबी को जहर किसने दिया? कुणाल ने बॉबी का बैकग्राउंड की तफ्तीश की तो पता चला कि बॉबी का रसूखदार लोगों से मिलना जुलना था| एक बात ये भी पता चली कि 1978 में जब बॉबी को विधानसभा में नौकरी मिली तो वहां एक विशेष प्राइवेट एक्सचेंज बोर्ड लगाया गया था| सिर्फ इसलिए ताकि बॉबी को टेलीफोन ऑपरेटर की नौकरी मिल जाए. बाद में वो बोर्ड बंद कर दिया गया और बॉबी को टाइपिस्ट के नौकरी मिल गयी| विधानसभा में नौकरी के दौरान उसकी कई नेताओं और विधायकों से अच्छी जान पहचान हो गई थी| तफ्तीश के लिए कुणाल एक और बार बॉबी की माताजी के सरकारी आवास पहुंचे| यहां उन्होंने पाया कि बॉबी की चीजें गायब हैं| उसी सरकारी आवास से लगा एक आउट हाउस हुआ करता था| जहां दो लड़के रहते. पुलिस ने उनसे पूछताछ की| उन लड़कों ने बताया कि 7 मई की रात वहां बॉबी से मिलने के लिए एक आदमी आया था| इस शख्स का नाम था रघुवर झा. रघुवर झा कांग्रेस की एक बड़ी नेता राधा नंदन झा का बेटा था|

अपनी किताब में कुणाल बताते हैं कि रघुवर झा के बारे में उन्हें बॉबी की मां राजेश्वरी सरोज दास ने भी बताया था|

सभापति की कुर्सी के नीचे रखा टेप रिकॉर्डर

युवकों के बयान के बाद कुणाल राजेश्वरी सरोज दास से मिलने पहुंचे। उन्होंने कहा, ‘मैडम आपकी बेटी को न्याय मिले इसके लिए इस बुढापे में तो सच बोलिए।’ यह सुन सरोज दास भावुक हो गईं। ये सब कुणाल ने सरोज दास के कुर्सी के नीचे टेप रिकॉर्डर रख रिकॉर्ड कर लिया था। इसकी जानकारी बाद में सरोज दास को भी उन्होंने दी। खुद राजेश्वरी सरोज दास ने 28 मई 1983 को अदालत में दिए गए अपने बयान में कहा कि बॉबी को कब और किसने जहर दिया था।

राजेश्वरी सरोज दास का कहना था कि रघुवर झा ने बॉबी को एक दवाई दी थी| जिसके बाद उसकी तबीयत बिगड़ने लगी| और बाद में उसकी मौत हो गई| बॉबी ने चूंकि ईसाई धर्म अपना लिया था. इसलिए उसे दफनाया गया. पुलिस के अनुसार केस का मुख्य अभियुक्त विनोद कुमार था. जिसने नकली डॉक्टर का रोल किया रघुवर झा के कहने पर बॉबी को दवाई पीने को दी| चूंकि केस में एक बड़े नेता के बेटे का नाम आ रहा था, इसलिए मामला हाई प्रोफ़ाइल बन गया| पुलिस की जांच जैसे -जैसे आगे बड़ी, सत्ता के गलियारों में हड़कंप मचने लगा| अदालत में केस पहुंचा. वहां राजेश्वरी दास ने अपने बयान में बताया कि कैसे नकली डॉक्टर से बॉबी का इलाज़ करवाया गया और झूठी पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट बना दी गई|

पुलिस अधिकारी कुणाल किशोर ने फ़ौरन ही अपनी जांच का दायरा बढ़ाते हुए युद्ध-स्तर पर बॉबी की हत्या के असली अपराधियों के गिरेबान तक पहुंचने की कोशिशें शुरू कर दीं। बॉबी के संदिग्ध हत्यारे लगने वाले बिहार कांग्रेस के नेताओं को पूछताछ के लिए रोज़ तलब किया जाने लगा। ईमानदारी से जांच की गहनता को देखकर बिहार के कई कद्दावर कांग्रेसी नेताओं के पसीने छूट गए। उन्हें ऐसा लगने लगा कि यदि इस जांच को जल्द ही न रोका गया तो उनकी गर्दन कभी भी फांसी के फंदे तक पहुंच सकती है। कुणाल किशोर को शुरूआती प्रलोभन दिए गए परंतु उनके और अधिक सख़्त होते तेवर देखकर बिहार कांग्रेस के अपराधी नेताओं की हालत पतली होती गई। 

केस की ख़बरें अब लोकल अख़बारों से देश के अख़बारों तक पहुंच चुकी थी| धीरे-धीरे इस केस में और कई लोगों का नाम जुड़ा. इनमें से कुछ सत्ताधारी विधायक और सरकार में मंत्री तक थे| जल्द ही मामले ने राजनीति का रंग भी ओड़ लिया | तब बिहार में कांग्रेस की सरकार थी और मुख्यमंत्री डॉ. जगन्नाथ मिश्र हुआ करते थे। विपक्ष की कम्युनिस्ट पार्टी ने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री आरोपियों को न पकड़ने के लिए पुलिस पर दबाव डाल रहे हैं | 

विपक्ष के नेता कर्पूरी ठाकुर, इस मामले में बार बार CBI जांच की मांग कर रहे थे | कुणाल लिखते हैं कि इस केस में उन पर काफी दबाव था | उनके वरिष्ठ अधिकारी ऐसे बर्ताव कर रहे थे मानों सच का पता लगाकर उन्होंने कोई गुनाह कर दिया है | ऐसे में एक रोज़ कुणाल के पास सीधे बिहार के मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र का कॉल आया |  कुणाल लिखते हैं कि CM ने उनसे पूछा, ये बॉबी कांड का मामला क्या है |

तत्कालीन SSP किशोर कुणाल ‘दमन तक्षकों का’ 2021 में रिलीज हुई (तस्वी कुणाल ने उन्हें जवाब दिया, सर कुछ मामलों में आपकी छवि अच्छी नहीं है, किंतु चरित्र के मामले में आप बेदाग हैं, इस केस में पड़िएगा तो यह ऐसी आग है कि हाथ जल जाएगा | अत: कृपया इससे अलग रहें | किताब के अनुसार जवाब सुनकर मुख्यमंत्री ने फोन रख दिया था | 

44 MLA और 2 मंत्री ने दी थी सरकार गिराने की धमकी हत्याकांड तथा बाॅबी से जुड़े अन्य तरह के अपराधों के तहत प्रत्यक्ष और परोक्ष ढंग से छोटे-बड़े कांग्रेस के कई नेता शामिल पाए गए थे | लेकिन फिर कहानी में एक और ट्विस्ट आया,  इस बहुत बड़े स्कैंडल का खुलासा बस होने ही वाला था कि तभी 44 एमएलए और दो मिनिस्टर सीएम के ऑफिस पहुंच गए और मुख्यमंत्री डॉ. जगन्नाथ मिश्र पर दबाव बनाया कि अगर इस मामले की जांच और बढ़ी या इस मामले को बिहार पुलिस से सीबीआई को ट्रांसफर नहीं किया गया तो हम आपकी सरकार गिरा देंगे | जिसके बाद मुख्यमंत्री भी दबाव में आ गए | 

उसके बाद बिहार के अपराधी कांग्रेसी नेताओं का एक प्रतिनिधिमंडल गुपचुप तरीक़े से दिल्ली जाकर 24 मई, सन 1983 को भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मिला और उन्हें इस केस के संबंध में सही-सही जानकारी देते हुए बताया कि यदि बिहार सरकार के तेज़तर्रार पुलिस अधिकारी कुणाल किशोर के हाथों से इस केस की जांच वापस नहीं ली गई तो बिहार की आधी से अधिक कांग्रेसी-सरकार जेल के अंदर होगी। अपनी पार्टी के अपराधी नेताओं की ऐसी बातों को सुनने के बाद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी समझ गईं कि यह केस अत्यंत ही गंभीर है। यदि जल्दी ही इस केस पर मिट्टी न डाली गई तो आगामी चुनावों में न केवल बिहार सरकार बल्कि उनकी केंद्र सरकार पर भी ग्रहण लग सकता है। 25 मई 1983 को इस केस को बिहार पुलिस से लेकर CBI को सौंप दिया गया था।

25 मई 1983 को इस केस को बिहार पुलिस से लेकर सीबीआई को सौंप दिया गया | हालांकि, उस वक्त इसकी कोई जरूरत नहीं थी | लेकिन मुख्यमंत्री का कहना था कि उनके ऊपर केस को लेकर काफी दबाव बनाया जा रहा है | करीब 100 नेता नहीं चाहते थे कि इस केस का खुलासा हो | अब केस की जांच सीबीआई के हाथों में थी | वहां भी हाई लेवल दबाव पड़ा और आखिर में केस रफा-दफा हो गया | 

CBI ने बेसिर पैर की कहानी गढ़कर कोर्ट को दे दी थी रिपोर्ट सत्ताधारी नेताओं को बचाने की हड़बड़ी में CBI ने बेसिर पैर की कहानी गढ़कर कोर्ट में फाइनल रिपोर्ट के तौर पर लगा दी। हत्या को आत्महत्या का रूप दे दिया गया। 

कहते हैं कि सीबीआई की टीम का एक भी सदस्य जांच के लिए पटना नहीं पहुंचा | ना तो उस डॉक्टर से मिला गया जिसके द्वारा बॉबी की फॉरेंसिक रिपोर्ट बनाई गई थी, ना ही आउटहाउस के उन दो युवकों से पूछताछ की गई | बल्कि दिल्ली में ही अपने ऑफिस में बैठकर सीबीआई के द्वारा एक कहानी रची गई | कहानी में लिखा गया कि ‘बॉबी ने आत्महत्या की है |’

आत्महत्या का कारण प्रेम प्रसंग बताया गया | कहा गया कि बॉबी ने सेंसिबल नाम की एक टेबलेट खाकर आत्महत्या की है जबकि फॉरेंसिक रिपोर्ट में इस टैबलेट का कोई नामोनिशान तक नहीं था | कहा गया कि बॉबी एक लड़के से प्यार करती थी और उससे शादी करना चाहती थी जब लड़के ने शादी से मना कर दिया तो बॉबी ने आत्महत्या का कदम उठाया | इतना ही नहीं बल्कि एक सुसाइड नोट भी तैयार किया गया जिसका अबसे पहले कहीं कोई जिक्र नहीं था | 

CBI रिपोर्ट के अनुसार बॉबी ने जो खत लिखा था वो उसकी मां ने जला दिया | और भी काफी दस्तावेज़ जलाए गए ताकि बड़े लोगों का इस केस में नाम ना आए |

CBI की ये रिपोर्ट जैसे ही सामने आई, बिहार में विपक्ष ने फिर हंगामा खड़ा कर दिया | क्योंकि CBI की रिपोर्ट नेताओं को क्लीन चिट दे रही थी | तब पटना की फॉरेंसिक लैब की तरफ से भी CBI की रिपोर्ट पर सवाल उठाए गए | उनके अनुसार पोस्टमार्टम में सेंसिबल टैबलेट का कोई अंश नहीं था | और बॉबी की मौत ‘मेलेथियन’ जहर से हुई थी | इस पर CBI ने सफाई देते हुए कहा कि गलती से लेबोरेटरी में रखे किसी दूसरे विसरा से बॉबी के विसरा में मेलेथियन चला गया होगा | 

इस केस में उपरोक्त बातों से इतर भी एक आश्चर्यजनक पहलू है। इस केस की जांच के दौरान सीबीआई ने कभी भी पटना पुलिस से संपर्क करने तक की ज़हमत तक नहीं उठाई और किसी फ़िल्म की स्क्रिप्ट की तरह ही इस केस की क्लोज़र-रिपोर्ट तैयार करके अदालत में दाख़िल भी कर दी। बिहार सरकार के सरकारी वकील ने भी सीबीआई की इस रिपोर्ट का विरोध नहीं किया और अदालत ने क्लोज़र रिपोर्ट को स्वीकार भी कर लिया। CBI ने इसे आत्महत्या का केस बताकर केस बंद कर दिया |

वीडियो: बिहार के चर्चित ‘बॉबी बलात्कार एवं हत्याकांड’ के बारे में बताते पूर्व पुलिस अधिकारी कुणाल किशोर

किशोर कुणाल कहते हैं तब PIL का जमाना नहीं था । कुछ लोगों ने कोर्ट में फिर मामले को खोलने के लेकर अपील भी की, लेकिन कोर्ट ने यह कहते हुए इसे खारिज कर दिया कि ऐसे मामलों में पीड़ित का परिवार या सरकार, यही दोनों अपील कर सकते हैं। किशोर कुणाल हमेशा कहते रहे कि उनकी नज़र में ये एक मर्डर केस था |

पूर्व आईपीएस कुणाल किशोर के मुताबिक़ उस समय सीबीआई के कुछ अच्छे ईमानदार अधिकारियों ने दबे-मुंह पटना पुलिस की शुरूआती जांच की सराहना भी की थी मगर केंद्र सरकार ने उन ईमानदार सीबीआई अधिकारियों को उक्त केस की जांच से हटाकर एजेंसी के अन्य भ्रष्ट अधिकारियों को सौंप दिया। 

कुणाल किशोर का कहना है कि बॉबी बलात्कार एवं हत्याकांड में उनकी आंखों के सामने बिकाऊ प्रशासनिक एवं जांच अधिकारियों की सहायता से बिहार एवं केंद्र की तत्कालीन कांग्रेसी सरकारों ने न्याय और संविधान का बलात्कार करते हुए भारत की एक बेटी को न्याय से वंचित करने का महापाप किया और वह कड़ी मेहनत और मुक़म्मल जांच के बाद भी इस मामले में बॉबी के बलात्कारी और हत्यारे कांग्रेसी गुंडों को क़ानून के कठघरे में लाकर सज़ा नहीं दिलवा पाए।

जनसत्ता की एक रिपोर्ट बताती है कि सालों बाद एक विधायक ने इस केस में एक हैरतअंगेज़ दावा किया |

कहा था,

“अगर हम लोग मामला रफा-दफा नहीं करवाते तो लोकतंत्र खतरे में पड़ जाता क्योंकि हमाम में सब नंगे थे”

1983 में बिहार में हुए चर्चित हत्याकांड ‘द बॉबी स्कैंडल’ जल्द सिल्वर स्क्रीन पर…सेक्स, क्राइम व थ्रीलर का तड़का

अब इस घटना को लेकर लिपिस्टिक बॉय फेम , फ़िल्म निर्देशक अभिनव ठाकुर फ़िल्म बनाने जा रहे हैं। वे पहले पटना और धनबाद पहुंचे….पत्रकारों और कलाकारों से मिले। घटना को लेकर चर्चाएं की और इस फ़िल्म के बारे में बात की।

उस वक़्त बिहार और झारखंड एक ही थे। उस वक्त इस घटना कांड को प्रकाशित करने वाले दोनों अखबारों को खोजा गया। घटना की जांच से जुड़े अधिकारियों और स्थानीय पत्रकारों से भी बातचीत की। तब जाकर “द बॉबी स्कैंडल “, फ़िल्म की कहानी तैयार हो सकी। 

अभिनव ठाकुर ने कहा कि इस हत्याकांड को सिल्वर स्क्रीन पर “द बॉबी स्कैंडल ”, के नाम से लाया जा रहा है। फ़िल्म का निर्माण AMJ Entertainment और Rock sault प्रोडक्शन कंपनी कर रही है।

– Rama Deepak

  M.A. Mass Communication
  M.A. Hindi

Rwanda Genocide 1994 || Hindi Documentary 2021 || 4k || TIRUPATI PRODUCTION

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